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क्षमता से अधिक छात्रों की ढुलाई से नाराज़ ग्रामीण बोले – “बच्चे जानवर नहीं हैं”, प्रबंधन से अविलंब समाधान की मांग

On: July 22, 2025 11:56 PM
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सारंडा घाटी, झारखंड | संवाददाता रिपोर्ट
सारंडा घाटी के बंकर गांव में सोमवार सुबह उस वक्त आक्रोश भड़क गया, जब ग्रामीणों ने स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल), किरीबुरू द्वारा संचालित दो स्कूली बसों को गांव में ही रोक दिया। ग्रामीणों का आरोप है कि इन बसों में क्षमता से कई गुना अधिक बच्चों को भरकर ले जाया जा रहा है, जिससे बच्चों की जान जोखिम में पड़ रही है और बंकर गांव के कई छात्र विद्यालय जाने से वंचित रह जा रहे हैं।

100 की जगह 250 छात्र, 50 बच्चे स्कूल से वंचित

बंकर निवासी कृष्णा मन्ना ने बताया कि सेल द्वारा चलाई जा रही दोनों बसों में पहले से ही 250 से अधिक छात्र चढ़ चुके होते हैं। ऐसे में जब बंकर के लगभग 50 बच्चे बस में चढ़ने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें मना कर दिया जाता है।
“पिछले शुक्रवार को हमने किरीबुरू जनरल ऑफिस का घेराव कर एक और बस या बड़ी बसों की मांग की थी। लेकिन अब तक कोई हल नहीं निकला। मजबूरन आज बसों को गांव में रोककर चेतावनी देनी पड़ी कि यदि व्यवस्था नहीं सुधरी, तो हम बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर देंगे,” कृष्णा ने बताया।

“बच्चे जानवर नहीं हैं” — अमानवीय हालात पर ग्रामीणों की नाराज़गी

ग्रामीणों ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि दोनों बसों में छात्रों को “भेड़-बकरियों की तरह ठूंसा जाता है”, जिससे बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास प्रभावित हो रहा है।
मानसून के इस मौसम में फिसलन भरे रास्तों पर दुर्घटनाओं की आशंका और अधिक बढ़ गई है।

एक ग्रामीण महिला ने गुस्से में कहा, “हमारे बच्चे स्कूल जाते हैं या मौत की ओर, ये कोई नहीं जानता। रोज सुबह डर के साथ उन्हें बस में बैठाते हैं। अगर कुछ हुआ तो क्या सेल जिम्मेदार होगा?”

ड्राइवर की भी लाचारी – “इतनी भीड़ में सुरक्षा संभव नहीं”

जब आंदोलन के दौरान ग्रामीणों ने बस को रोका, तो चालक ने भी अपनी मजबूरी जाहिर की। उन्होंने कहा, “इतनी भीड़ में बच्चों को सुरक्षित ले जाना संभव नहीं है। अगर कोई हादसा हुआ, तो उसकी जिम्मेदारी मेरी नहीं होगी।”
उन्होंने आंदोलनकारी ग्रामीणों को आश्वस्त किया कि वे प्रबंधन से बात करेंगे और समाधान की मांग रखेंगे।

प्रबंधन की चुप्पी से नाराज़ ग्रामीण, उग्र आंदोलन की चेतावनी

ग्रामीणों का आरोप है कि बार-बार अनुरोध के बावजूद सेल प्रबंधन चुप्पी साधे हुए है
“हमने पहले भी जनरल ऑफिस का घेराव किया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। अगर अब भी सुनवाई नहीं हुई, तो हम बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर देंगे और अनिश्चितकालीन धरना शुरू करेंगे,” बंकर वासियों ने चेतावनी दी।

कानून की अवहेलना, प्रशासन की चुप्प

स्कूल बसों में क्षमता से अधिक बच्चों को ढोना कानूनन अपराध है। मोटर वाहन अधिनियम के तहत यह गंभीर सुरक्षा उल्लंघन की श्रेणी में आता है।
दुर्भाग्य की बात है कि सारंडा जैसे दूरस्थ क्षेत्र में इस कानून की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। साथ ही सवाल उठता है — क्या स्थानीय प्रशासन और शिक्षा विभाग ने कभी इस समस्या का निरीक्षण किया?

ग्रामीणों की प्रमुख मांगें:

  • बंकर और आसपास के गांवों के बच्चों के लिए एक अतिरिक्त स्कूल बस
  • पुरानी बसों की जगह अधिक क्षमता वाली नई बसों की व्यवस्था
  • नियमित निगरानी और दुर्घटना की स्थिति में जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय हो

निष्कर्ष: यह सिर्फ बस की मांग नहीं, बल्कि जिम्मेदारी की बात है

सारंडा जैसे दुर्गम क्षेत्र में शिक्षा पहले से ही कठिनाइयों से जूझ रही है। ऐसी परिस्थितियों में सुरक्षित परिवहन की अनुपलब्धता बच्चों के भविष्य को और अंधकारमय बना रही है। यह केवल एक बस की मांग नहीं, बल्कि सुरक्षा, सम्मान और शिक्षा के अधिकार की लड़ाई है।

सवाल यह है—क्या देश की सबसे बड़ी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी अपने ही क्षेत्र के बच्चों को सुरक्षित स्कूल पहुंचाने की जिम्मेदारी निभा पाएगी?

SINGHBHUMHALCHAL News

सिंहभूम हलचल न्यूज़ एक स्थानीय समाचार मंच है, जो पश्चिमी सिंहभूम, झारखंड से सटीक और समय पर समाचार प्रदान करने के लिए समर्पित है। यह राजनीति, अपराध, मौसम, संस्कृति और सामुदायिक मुद्दों को हिंदी में कवर करता है।

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