हाईकोर्ट में कानूनी जंग जारी, जबकि जमीन पर ‘आंख बंद, डिबिया गुल’ के खेल में अरबों का लौह अयस्क हो रहा पार
विशेष रिपोर्ट: शैलेश सिंह
झारखंड का पश्चिमी सिंहभूम, जहां लाल पत्थरों के नीचे देश की सबसे समृद्ध लौह अयस्क की खानें दबी पड़ी हैं, आज एक ऐसे घोटाले और अपराध की पटकथा लिख रहा है जिसने पूरे खनन सेक्टर को सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया है। मामला सिर्फ बंद पड़े खदानों तक सीमित नहीं है, यह एक माफिया साम्राज्य, सरकारी मिलीभगत, प्रशासनिक लापरवाही और कानूनी खामियों की खुली किताब है।
मुख्य विवाद का केंद्र है – ठाकुरानी आयरन ओर माइंस (चारिपाठबुरु, नोवामुंडी, चाईबासा), जो दशकों से झारखंड की खनन नीति का हिस्सा रहा। इस खदान के साथ ही केडीएस की रजत मिनरल कोर माइंस और कांद्रा क्रशर से सटे लौह अयस्क भरे पहाड़ भी अब माफियाओं के शिकंजे में आ चुके हैं।
ये खदानें बंद हैं, लेकिन इनमें छिपा लाखों टन 63% से अधिक ग्रेड वाला ब्लू डस्ट अयस्क माफियाओं के लिए ‘खुले खजाने’ की तरह है। और यही वजह है कि अब जंगल के अंधेरे रास्तों से लेकर हाईवे तक, माफिया नेटवर्क ने अपनी जड़े पसार दी हैं।

1969 से शुरू हुई लूट की पटकथा !
- 1969: ठाकुरानी आयरन ओर माइंस का पट्टा जैन परिवार को मिला।
- 1986: लीज 30 साल के लिए नवीनीकृत।
- 1997: राज्य सरकार की अनुमति से लीज पदम कुमार जैन के नाम ट्रांसफर।
यहां तक सब सामान्य था, लेकिन कहानी की असली शुरुआत तब हुई जब तीसरी बार लीज नवीनीकरण की प्रक्रिया में कानूनी और प्रशासनिक खेल शुरू हुए।
कानूनी पेंच और सरकारी दांव
- 2010: जैन ने तीसरी बार लीज नवीनीकरण का आवेदन दिया।
- 2015: MMDR Act संशोधित हुआ और सरकार ने लीज न बढ़ाने का फैसला किया।
- 2017: केंद्रीय पुनरीक्षण प्राधिकारी ने आदेश पलटते हुए लीज 31 मार्च 2020 तक बढ़ा दी।
- इसके लिए जैन ने ₹1.58 करोड़ स्टांप शुल्क और ₹86 लाख पंजीकरण शुल्क का भुगतान किया।
लेकिन खनन शुरू नहीं हो सका क्योंकि पर्यावरणीय मंजूरी में जानबूझकर देरी की गई। और इसी बीच, माफिया सक्रिय हो गए।
मुआवजे का खेल: ₹335 करोड़ की मांग
खनन विभाग ने 2013 में आरोप लगाया कि कंपनी ने पर्यावरण सीमा से अधिक खनन किया है।
- 2013 में ₹363 करोड़ का नोटिस।
- 2015 में ब्याज जोड़कर यह रकम ₹879 करोड़ हो गई।
- 2017 में सुप्रीम कोर्ट (ओडिशा केस) का हवाला देते हुए नया नोटिस ₹335.12 करोड़ का थमा दिया गया।
कंपनी का तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश झारखंड पर लागू नहीं होता, लेकिन सरकार अपनी वसूली पर अड़ी हुई है। अयस्क की ग्रेड विवाद के बाद सरकार इसका पुनः ग्रेडिंग करा यहां पड़े अयस्क की नीलामी करने की योजना पूर्व में बनाई थी।
खदान में पड़ा खजाना और माफियाओं का शिकंजा
- ठाकुरानी माइंस: लाखों टन ब्लू डस्ट (63%+)
- रजत मिनरल कोर माइंस: हजारों टन (62%+)
- कांद्रा क्रशर से सटे लौह अयस्क भरे पहाड़
कागजों पर तो यह अयस्क “सुरक्षित” बताया जाता है, लेकिन हकीकत बिल्कुल उलट है।
सूत्रों का कहना है कि माफियाओं ने भारी मशीनों से चोर रास्ते बना लिए हैं। रात के अंधेरे में पोकलेन और लोडर मशीनें गड़गड़ाती हैं, और दर्जनों हाईवा ट्रक माल लादकर झारखंड की ओर रवाना हो जाते हैं।
“आंख बंद और डिबिया गुल“ वाली कहावत यहां सच साबित हो रही है — प्रशासन और खनन विभाग आंखें मूंदे बैठे हैं, जबकि करोड़ों का अयस्क निकल रहा है।

हाईकोर्ट का हस्तक्षेप, लेकिन न्याय अभी अधूरा
- 10 दिसंबर 2021: हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने जैन की याचिका खारिज की।
- डिवीजन बेंच (जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय) ने कहा कि ₹335 करोड़ का मामला केवल देरी की वजह से नहीं निपटाया जा सकता।
मामला अब फिर से सिंगल बेंच में है। यानी, फैसला लंबित है और इस बीच माफियाओं के लिए लूट का रास्ता खुला है।
प्रशासनिक ढिलाई और सवालों के पहाड़
- निगरानी का सच: कागज पर सुरक्षा, जमीन पर चोरी।
- राजस्व हानि: अयस्क की कीमत अरबों में, सरकारी राजस्व को नुकसान सीधा।
- कानूनी धुंध: कोर्ट के फैसले तक खदान का भविष्य अधर में।
स्थानीय असर — बेरोजगारी और अपराध
- खदान बंद, तो हजारों मजदूर बेरोजगार।
- बेरोजगारी ने गांवों में अपराध और पलायन बढ़ाया।
- बंद खदानें माफियाओं का अड्डा बनीं।
- चोरी-छिपे खनन से जंगल और पर्यावरण बर्बाद।
माफियाओं का गठजोड़: जंगल से मंत्रालय तक
वन विभाग के सूत्रों ने खुलासा किया है कि 18 अगस्त की रात भारी वाहनों में अयस्क की अवैध लोडिंग पकड़ी गई। लेकिन माफियाओं के दबदबे के आगे टीम को पीछे हटना पड़ा।
जांच में सामने आया:
- ओडिशा और झारखंड का चर्चित माफिया गिरोह इसमें शामिल।
- रिजर्व फॉरेस्ट के बगल में रैयतों की जमीन किराए पर लेकर वहां अयस्क का भंडारण।
- फर्जी माइनिंग चालान बनाकर माल बाहर भेजना।
- इस नेटवर्क का संचालन पूर्वी सिंहभूम का एक प्रभावशाली व्यक्ति कर रहा है, जिसे सत्तारूढ़ नेताओं का संरक्षण प्राप्त है।
यह माफिया अब खुलेआम दावा करता है — “इस बार लाइनअप इतना मजबूत है कि कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता।”

विशेषज्ञों की राय
खनन विशेषज्ञ कहते हैं:
- अगर सुप्रीम कोर्ट का ओडिशा आदेश झारखंड पर लागू नहीं होता, तो ₹335 करोड़ का नोटिस टिकेगा नहीं।
- सरकार और विभाग की पारदर्शिता की कमी ही माफियाओं को ताकत देती है।
- अगर नीति नहीं बनी, तो झारखंड का खनन सेक्टर पूरी तरह अपराधियों के कब्जे में चला जाएगा।
आगे की राह — या तो सुधार या बर्बादी
- अदालत: अगली सुनवाई से तय होगा कि खदान का भविष्य क्या होगा।
- प्रशासन: चोरी रोकने के लिए तत्काल सख्ती जरूरी।
- राज्य सरकार: बंद खदानों के लिए ठोस नीति बनानी होगी।
निष्कर्ष: लाल माटी का सच, सत्ता की चुप्पी
ठाकुरानी आयरन ओर माइंस सिर्फ एक कानूनी विवाद नहीं है। यह झारखंड की खनन नीति की नाकामी, प्रशासनिक मिलीभगत और माफियाओं की सत्ता पर पकड़ का जीवंत उदाहरण है।
आज सवाल यह है — क्या अदालत और प्रशासन मिलकर इस ‘लाल माटी के काले खेल’ पर रोक लगा पाएंगे, या झारखंड का यह खजाना माफियाओं के हवाले होकर इतिहास के काले पन्नों में दर्ज होगा