त्यौहार से पहले रोज़गार छिनने से श्रमिकों में निराशा, क्षेत्र में अराजकता का खतरा
रिपोर्ट : शैलेश सिंह
एक सुबह, जिसने बदल दी हजारों ज़िंदगियाँ
18 अगस्त की सुबह जब टाटा स्टील की विजय–टू लौह अयस्क खदान का संचालन अचानक ठप हुआ, तो वहां काम करने वाले करीब 800 श्रमिकों और उनसे जुड़े वाहन मालिकों, चालकों, हेल्फ़रों तथा अन्य परिवारों की दुनिया जैसे थम गई। यह खदान लीज़ नवीनीकरण न होने के कारण बंद कर दी गई। बंद होने का यह आदेश कागज़ पर जितना सामान्य दिखता है, ज़मीनी स्तर पर उसका असर उतना ही भयावह और दर्दनाक है।
गर्मी, बरसात और ठंड – हर मौसम में अपनी मेहनत बहाकर खदान को चलाने वाले मजदूरों के सामने अचानक प्रश्न खड़ा हो गया –
“अब आगे क्या?”
वेंडरों के अधीन काम करने वाले श्रमिक सबसे ज्यादा प्रभावित
विजय–टू खदान में करीब 8 वेंडरों के अधीन 800 श्रमिक काम कर रहे थे। खदान का हर संचालन इन्हीं मेहनतकश हाथों पर टिका था। ड्रिलिंग से लेकर खनिज निकालने और उसे वाहनों में लादने तक, हर चरण में उनकी भूमिका अहम थी। लेकिन अब सबकुछ ठप हो गया है।
श्रमिकों को अभी तक यह भी साफ नहीं है कि उन्हें बकाया मजदूरी कब मिलेगी। सूत्रों की मानें तो टाटा स्टील फाइनल पेमेंट देने की तैयारी कर रही है, लेकिन यह राहत अस्थायी होगी। असली संकट है – आगे रोज़गार कहां से मिलेगा?
हाईवा मालिकों और चालकों पर कर्ज का बोझ
सिर्फ मजदूर ही नहीं, बल्कि सैकड़ों हाईवा और छोटे-बड़े वाहनों के मालिक भी इस संकट से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
- हर वाहन पर लाखों का बैंक कर्ज है।
- हर महीने की ईएमआई भरना अनिवार्य है।
- चालकों और हेल्फ़रों की रोज़ी-रोटी इन्हीं गाड़ियों पर टिकी है।
खदान बंद होते ही जैसे सबका पेट काट लिया गया हो। अब सवाल है कि किस पैसे से बच्चे की फीस भरें, परिवार का खर्च चलाएं और बैंक का कर्ज चुकाएं?
त्यौहार से पहले टूटा संकट
यह खदान ऐसे समय में बंद हुई है जब इलाके में बड़े-बड़े पर्व जैसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, दुर्गा पूजा, दीपावली और छठ सामने हैं। त्योहार, जो खुशी और उत्सव का प्रतीक होते हैं, अब इन परिवारों के लिए मायूसी और चिंता का कारण बन गए हैं।
एक मजदूर की पत्नी कहती है –
“बच्चों ने नए कपड़ों की जिद की थी, लेकिन अब तो घर चलाना ही मुश्किल है। त्यौहार कैसे मनाएंगे? भगवान ही मालिक है।”
बच्चों की पढ़ाई पर संकट
गांव के बच्चे, जो अभी तक खदान की कमाई से पढ़ रहे थे, उनकी शिक्षा पर भी खतरा मंडरा रहा है। फीस का इंतज़ाम कैसे होगा? किताबें और कॉपियां कैसे मिलेंगी? कई परिवारों को डर है कि मजबूरी में बच्चों को पढ़ाई बीच में छोड़कर काम पर लगाना पड़ सकता है।
पलायन और अपराध की आशंका
इतनी बड़ी संख्या में रोज़गार खत्म होना पुलिस और प्रशासन के लिए भी चिंता का विषय है। जब हजारों लोग बेरोजगार हो जाते हैं, तो दो स्थितियाँ बनती हैं –
- पलायन – रोज़गार की तलाश में लोग गांव-घर छोड़कर दूसरे शहरों और राज्यों की ओर चले जाएंगे।
- अपराध – मजबूरी में चोरी, लूट और अन्य आपराधिक गतिविधियों में वृद्धि हो सकती है।
स्थानीय पुलिस पहले से ही सतर्क है। लेकिन इतने बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी का बोझ संभालना आसान नहीं होगा।
साल 2019 की यादें और अधिग्रहण का सफर
साल 2019 में जब टाटा स्टील ने उषा मार्टिन से यह खदान अधिग्रहित किया था, तो इलाके में खुशहाली लौटी थी। मजदूरों को रोज़गार मिला, गाड़ियां दौड़ने लगीं, बाजारों में रौनक बढ़ी। लोगों ने अपने घर बनाए, बच्चों की पढ़ाई शुरू करवाई, बैंक से लोन लेकर गाड़ियां खरीदीं।
लेकिन अब 2025 में अचानक खदान बंद होने से सारी उम्मीदें धराशायी हो गई हैं।
सरकार से उम्मीदें
सवाल यह है कि सरकार इस मसले को कब और कैसे हल करेगी? लीज नवीनीकरण एक कानूनी और प्रशासनिक प्रक्रिया है, लेकिन इसके चलते हजारों परिवारों की रोज़ी-रोटी दांव पर नहीं लगनी चाहिए।
सरकार चाहे तो –
- इस खदान सहित बंद पड़ी सभी खदानों को प्राथमिकता से चालू कराने की दिशा में पहल कर सकती है।
- प्रभावित श्रमिकों के लिए वैकल्पिक रोज़गार या राहत पैकेज की घोषणा कर सकती है।
- त्योहार से पहले आपातकालीन सहायता देकर परिवारों की तत्काल समस्या दूर कर सकती है।
सामाजिक ताने-बाने पर असर
सिर्फ मजदूर ही नहीं, बल्कि उनसे जुड़े दुकानदार, सब्ज़ीवाले, चाय की दुकानें, किराना और स्थानीय बाजार भी इस संकट से प्रभावित होंगे। जब मजदूरों की जेब में पैसा नहीं होगा, तो बाजार की रौनक भी गायब हो जाएगी। धीरे-धीरे पूरा इलाका आर्थिक सुस्ती की चपेट में आ जाएगा।
एक मजदूर की कहानी – ‘पर्व नहीं, भूख की चिंता’
रामू महतो (परिवर्तित नाम), जो पिछले पाँच साल से इस खदान में हेल्पर के रूप में काम कर रहा था, अब बेरोजगार है। उसकी पत्नी बीमार है और तीन छोटे बच्चे स्कूल जाते हैं।
रामू कहता है –
“हर महीने की मजदूरी से ही घर चलता था। अब तो राशन का इंतज़ाम भी मुश्किल है। त्यौहार तो दूर की बात है, पहले भूख मिटाना जरूरी है।”
रामू की कहानी अकेली नहीं, बल्कि उन सैकड़ों मजदूरों की है जो आज निराशा की कगार पर खड़े हैं।
क्षेत्र में अराजकता का खतरा
अगर इस संकट का जल्द समाधान नहीं निकला, तो पूरा इलाका अराजकता की गिरफ्त में आ सकता है।
- बेरोज़गार युवा असामाजिक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं।
- पलायन से गांव उजड़ सकते हैं।
- क्षेत्र में अशांति बढ़ सकती है।
अब सवाल यह है…
- क्या सरकार खदान को जल्द चालू कराने की दिशा में ठोस कदम उठाएगी?
- क्या मजदूरों और वाहन मालिकों के लिए कोई राहत योजना बनेगी?
- क्या त्योहार से पहले इन परिवारों को कोई सहायता मिलेगी?
अगर इन सवालों का जवाब जल्द नहीं मिला, तो यह संकट एक सामाजिक विस्फोट में बदल सकता है।
निष्कर्ष – उम्मीद की राह
विजय–टू खदान का बंद होना सिर्फ एक खदान का ठप होना नहीं है, यह हजारों परिवारों के सपनों का बिखरना है। सरकार और कंपनी दोनों की ज़िम्मेदारी बनती है कि वे जल्द से जल्द समाधान खोजें।
त्योहार की घड़ी में इन परिवारों की आंखों में आंसू नहीं, बल्कि उम्मीद और मुस्कान होनी चाहिए। लेकिन अभी हालात यह है कि उनके सामने सिर्फ भूख, बेरोज़गारी और अनिश्चितता की तस्वीर है।