सड़क पर मलबा, गांवों में सन्नाटा
✍️ रिपोर्ट: शैलेश सिंह
अत्यंत नक्सल प्रभावित सारंडा जंगल में भारी बारिश का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा। हतनाबुरू और मारागपोंगा गांव के बीच मुख्य ग्रामीण सड़क पर पहाड़ की मिट्टी धंसकर आ गिरी। यह वही सड़क है जो दर्जनों गांवों को आपस में जोड़ती है और सारंडा के लोगों के जीवन की धड़कन मानी जाती है। पर अब वहां सिर्फ कीचड़, पत्थर और मलबा पसरा है।
ग्रामीणों की सांसें थम गईं, क्योंकि यह सिर्फ एक सड़क नहीं, बल्कि उनकी आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक जीवनधारा है।
छोटानागरा हाट पर लग सकता है ताला!
शनिवार को छोटानागरा का प्रसिद्ध साप्ताहिक हाट बाजार जैसे श्मशान हो हो सकता है। न रंग-बिरंगे स्टॉल, न खरीदारों की भीड़ और न ही गांव से आए किसानों की पुकार सुनने को मिलेगा! यह वही बाजार है जहां सारंडा के लोग अपने खेतों की सब्जियां, जंगल का महुआ, साल पत्ता, तसर और लकड़ी बेचकर चूल्हा जलाने के लिए पैसा जुटाते हैं।
लेकिन सड़क बंद होते ही यह धंधा चौपट हो सकता है।
एक किसान नाथु बहंदा ने रोष जताते हुए कहा –
“हमरा पेट पर वार कर दिया यह वर्षा। जब रास्ता ही बंद, त बाजार कैसे पहुंचब? ई त हमनी के जीने पर हमला बा।”
पढ़ाई और इलाज पर ताला
सड़क ठप होने का मतलब है कि बच्चे अब स्कूल नहीं पहुंच सकते। बारिश से पहले जहां किसी तरह साइकिल या पैदल बच्चे स्कूल जाते थे, वहीं अब उनके कदम गांव की गलियों तक सीमित हो गए हैं।
मरीजों के लिए तो यह और भी खतरनाक स्थिति है। गांववालों का कहना है कि अगर किसी को अचानक बुखार, डेंगू या गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाना पड़े, तो अब यह लगभग नामुमकिन हो चुका है।
एक ग्रामीण ने गुस्से से कहा –
“अस्पताल का रास्ता बंद है, मतलब हमारी जिंदगी भी बंद है।”
सीआरपीएफ कैंप की रसद पर संकट
सारंडा जंगल में नक्सलियों पर काबू पाने के लिए जगह-जगह सीआरपीएफ और झारखंड पुलिस के कैंप बने हैं। इन कैंपों तक खाद्यान्न, दवाइयां और जरूरी सामग्रियां इसी सड़क से पहुंचाई जाती हैं।
सड़क ठप होने का असर सीधा सुरक्षा बलों की आपूर्ति पर पड़ा है।
यह स्थिति प्रशासन की योजना और दूरदर्शिता पर सवाल उठाती है।
अगर इसी दौरान नक्सली कोई गतिविधि बढ़ा दें और सुरक्षा बलों तक रसद समय पर न पहुंचे तो इसका जिम्मेदार कौन होगा?
ग्रामीणों की चीख: प्रशासन सो रहा है
भूस्खलन के बाद ग्रामीणों ने उम्मीद की थी कि जिला प्रशासन या वन विभाग तुरंत जेसीबी मशीनें भेजकर मलबा हटाएगा। लेकिन घंटों बीतने के बाद भी मौके पर कोई अधिकारी नहीं पहुंचा।
ग्रामीणों ने खुद कुदाल और फावड़ा लेकर मिट्टी हटाने की कोशिश की, पर विशाल मलबा उनके सामर्थ्य से बाहर है।
उनका कहना है –
“हम वोट देने लायक हैं, लेकिन हमारी जान की परवाह किसी को नहीं। सरकार सिर्फ चुनाव में याद करती है, बाकी समय हम जंगल में कैद बंदर से भी बदतर जिंदगी जीते हैं।”
बारिश और सारंडा की भौगोलिक त्रासदी
सारंडा का इलाका घने जंगलों और ऊंचे-नीचे पहाड़ों से घिरा है। बारिश के मौसम में यहां अक्सर भूस्खलन होता है। लेकिन इन घटनाओं से निपटने के लिए न तो प्रशासन कोई स्थायी उपाय करता है और न ही सड़क निर्माण में गुणवत्ता का ख्याल रखा जाता है।
जरा सी बारिश होते ही सड़कें ध्वस्त और पहाड़ धंसने लगते हैं।
बच्चों और महिलाओं पर सबसे ज्यादा असर
इस संकट का सबसे ज्यादा बोझ बच्चों और महिलाओं पर पड़ा है।
- बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे, जिससे पढ़ाई ठप है।
- महिलाएं बाजार नहीं पहुंच पा रहीं, जिससे घर की जरूरतें पूरी नहीं हो रहीं।
- गर्भवती और बीमार महिलाओं की हालत बेहद नाजुक हो सकती है।
यह सिर्फ एक सड़क की समस्या नहीं है, यह ग्रामीणों की जीवनरेखा पर सीधा हमला है।
क्या प्रशासन जागेगा?
ग्रामीणों ने जिला प्रशासन और वन विभाग से तत्काल कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि अगर जल्द ही मलबा नहीं हटाया गया तो उनकी अर्थव्यवस्था, शिक्षा और स्वास्थ्य सब बर्बाद हो जाएगा।
लेकिन सवाल यह है कि क्या प्रशासन सचमुच ग्रामीणों की पुकार सुनेगा, या यह आवाजें बारिश और जंगल की खामोशी में खो जाएंगी?
सारंडा का दर्द, व्यवस्था की नाकामी
यह घटना कोई पहली नहीं है। हर साल बारिश में सड़कें टूटती हैं, भूस्खलन होता है और गांव महीनों तक दुनिया से कटे रहते हैं। इसके बावजूद न तो सड़क निर्माण में स्थायित्व लाने की कोशिश होती है और न ही आपातकालीन योजना बनाई जाती है।
ग्रामीण अब सवाल कर रहे हैं –
“हम आखिर किसके लिए जिएं? न इलाज, न पढ़ाई, न बाजार, न सुरक्षा। सरकार सिर्फ कागजों में सड़क दिखाती है, हकीकत में हमें कीचड़ और मलबा दिया गया है।”
निष्कर्ष: यह सिर्फ सड़क नहीं, जीवन की डोर है
सारंडा की यह बंद सड़क हमें याद दिलाती है कि ग्रामीण इलाकों में सड़कें केवल आवागमन का साधन नहीं होतीं, बल्कि जीवन की डोर होती हैं। जब यह डोर टूटती है, तो पूरा समाज अंधेरे में डूब जाता है।
भूस्खलन से बंद हुई सड़क ने ग्रामीणों की आर्थिक आय, बच्चों की शिक्षा, मरीजों की जिंदगी और सुरक्षा व्यवस्था पर एक साथ प्रहार किया है। अब प्रशासन को सिर्फ दिखावटी घोषणा नहीं, बल्कि जमीनी कार्रवाई करनी होगी।