अनंत बनाम सूरजभान, दुलारचंद से टाल तक — किसका साम्राज्य?
और कब खत्म होगा यह ‘बारूद का राज’!
जहाँ खेतों में दाल नहीं,
कंधों पर चलती है गोली।
मोकामा, ये बिहार है,
यहाँ नेता नहीं—‘सरकार’ बनते हैं गोलीबाज!
रिपोर्ट — शैलेश सिंह
मोकामा… एक नाम, एक सवाल, और एक डर।
कभी उद्योगों का हब, आज अपराधियों का गरम-खून वाला अखाड़ा।
इस शहर ने मजदूरों की चीख भी सुनी है, और AK–47 की दहाड़ भी।
यहाँ बहती गंगा को भी लगता होगा—“ये धरती कब साफ होगी?”

30 अक्टूबर 2025—
घोसवारी में गोलियों की बौछार।
76 साल का दुलारचंद यादव ढेर।
और मोकामा का पेट फिर से फट गया…
वही पुरानी कहानी—बंदूक, बदला और बादशाहत का खून भरा खेल।
“बारूद का शहर”… कभी ‘उद्योग नगरी’ था
सत्तर–अस्सी का दशक…
रेल इंजनों की सीटी मोकामा की सुबह जगाती थी।
टाल इलाके की हवा में दाल की खुशबू थी।
फैक्ट्रियों का धुआं विकास की पहचान था।
फिर…
राजनीति आई। सत्ता का स्वाद आया।
और बंदूक ने अनाज उगाती जमीन को लाशों से सींच दिया।
आज मोकामा का नाम आते ही दिमाग में आता है:
गैंग, गन, और गैंगस्टर-पॉलिटिक्स।

चार नाम, एक डर — मोकामा की ‘खूनी चौकड़ी’
🔴 अनंत सिंह — छोटे सरकार
🔴 सूरजभान सिंह — बाहुबली सांसद
🔴 सोनू-मोनू — सड़कों पर ‘रॉकेट लांचर’ वाली दहशत
🔴 टाल का राज — खेती नहीं, ‘खून का कारोबार’
ये लोग नेता नहीं थे…
ये कानून के सिर पर पैर रखकर चलने वाले ‘छद्म-राजा’ थे।
अनंत सिंह — गरीबी से नहीं, ‘गोली से पैदा हुआ साम्राज्य’
1961, लदमा गांव…
अनंत सिंह ने गरीबी से लड़ाई नहीं की—
उसने तंत्र से लड़ाई की, फिर जनता से, फिर लोकतंत्र से।
1990 से आगे…
अपहरण, रंगदारी, हथियार, गैंगवार—
जितने केस, उतनी कहानियाँ।
हर पार्टी ने उसे अपनाया, हर सत्ता ने उससे डर खाया।
“बिहार की राजनीति में टिकट विचारधारा से नहीं,
बारूद की ताकत से मिलता है।”
2019 में घर से AK–47 मिला — सजा हुई।
2024 में बरी — राजनीति में वापसी।
अब 2025 में फिर घिरा — हत्या का साया पीछे घूम रहा।
दुलारचंद यादव — टाल का बूढ़ा ‘सिंह’ जो जिंदा ही दहाड़ता था
80 के दशक से टाल इलाका दुलारचंद का किला।
जमीन कब्ज़ा, ठेके की राजनीति, गोलियों की गूंज।

उम्र 76, लेकिन दबदबा वही ‘बाप टाइप’।
अनंत सिंह को खुलेआम चुनौती देता था।
2025 चुनाव में जनसुराज के उम्मीदवार के लिए फुल तैयारी।
30 अक्टूबर —
गोलियाँ चलीं। टाल का पुराना बाघ गिर गया।
और मोकामा ने फिर देखा—खून कभी बूढ़ा नहीं होता।
परिवार चीख उठा —
“छोटे सरकार ने ही दादा को मरवाया!”
अनंत ने पलटवार किया —
“ये सूरजभान की साजिश है!”
यानी खेल अभी खत्म नहीं…
ये सिर्फ नया राउंड शुरू हुआ है।
मोकामा — जहाँ वोट नहीं, ‘वर्चस्व’ चुना जाता है
5 दिन बाद चुनाव।
लेकिन गलियों में सन्नाटा।
लोग दाल खरीदने नहीं, कमर में तमंचा ठोकने की बात करते हैं।
उम्मीदवार मैदान में:
- अनंत सिंह — JDU
- वीणा देवी — RJD
- पीयूष प्रियदर्शी — जनसुराज
सवाल:
क्या इस बार बैलेट बैलेंस करेगा?
या फिर बैरेल ऑफ गन चुनाव का फैसला लिखेगा?
“यहाँ जनता उम्मीदवार नहीं चुनती—
जिसके पास हथियार हो, वही जनता चुन लेती है।”

जाति + जमीन + जिन्दा दहशत = मोकामा का ब्लास्ट मॉडल
यहाँ राजनीति नहीं होती—
जातीय गैंगवार होती है।
भूमिहार vs राजपूत।
टाल जमीन की लड़ाई।
गैंग + चुनाव = मौत का कॉम्बिनेशन।
सत्ता नहीं मिलती—
छीननी पड़ती है।
और जो छीनता है, वही ‘मान्यवर’ बनता है।
टाल की जमीन — फसल नहीं, ‘लाशें उगाती है’
गंगा किनारे बड़ी जमीनें।
कानून कमज़ोर, पैसा ज्यादा।
टाल में खेती को छोड़ खूनी ठेका तंत्र पनपा।
दुलारचंद से अनंत तक—
जमीन का खेल है, बंदूक खिलाड़ी है।
मोकामा के लोग — डर में जीना ‘परंपरा’ बन गया
यहाँ बच्चों तो इतिहास में गांधी पढ़ते हैं,
पर असल हीरो कौन?
छोटे सरकार, बड़े सरकार और टाल के राजा।
किसी घर में क्रांति की बात नहीं,
युवाओं की महत्वाकांक्षा—”भाई के गनर बन जाएंगे”
हत्या के बाद का मोकामा — सन्नाटा, दहशत, और सवाल
30 अक्टूबर की गोलीबारी…
लोगों ने फिर देखा कि लोकतंत्र कागज पर है,
जमीनी सत्ता का फैसला बंदूक करती है।
मोकामा पूछ रहा—
⚠️ क्या पुलिस सच में चाहेगी सच्चाई?
⚠️ या फिर केस फिर राजनीति में धंस जाएगा?
⚠️ दुलारचंद की मौत बदले की नई फाइल खोलेगी?
यह मरने वाला माफिया नहीं,
यह माफिया युग का ‘पुराना अध्याय’ था
जिसे गोलियों ने बंद कर दिया।

आखिरी सवाल — क्या कभी यह खून थमेगा?
जैसे गंगा बहती है…
वैसे ही मोकामा बहा है खून में।
राज्य बदला, सरकार बदली,
लेकिन मोकामा की पहचान नहीं बदली।
आज भी यहाँ सत्ता का सबसे बड़ा सवाल:
“किसकी औकात भारी?”
और जनता?
डरी हुई… सिमटी हुई… चुप।
क्योंकि यहाँ सच बोलने से पहले,
लोग मुंह नहीं—अपना कफन नापते हैं।”
स्लोगन एंड पंचलाइन
🔥 मोकामा में चुनाव नहीं होते,
खून की परतों पर शासन तय होता है।
🔥 यहाँ नेता नहीं बनते—
यहाँ ‘खूनी अध्याय’ लिखा जाता है।
🔥 बिहार पूछ रहा है—
लोकतंत्र है या ‘लाइसेंसी गैंगस्टरशिप’!
🔥 और मोकामा अब भी चुप है…
क्योंकि गोली की आवाज़ वोट से तेज होती है।
✍️ निष्कर्ष
दुलारचंद की हत्या केवल एक मर्डर नहीं,
बिहार के राजनीतिक माफिया युग का नया पन्ना है।
अनंत बनाम सूरजभान 2.0 शुरू।
अब खेल कोर्ट और सड़क दोनों में होगा।
या तो इतिहास बदलेगा,
या फिर मोकामा फिर लहूलुहान होगा।















