आस्था, परंपरा और सांस्कृतिक वैभव का अद्भुत संगम
रिपोर्ट : शैलेश सिंह
भक्ति और उल्लास का अद्भुत नजारा
पश्चिम सिंहभूम जिले के पर्वतीय नगर किरीबुरू स्थित श्री श्री लोकेश्वर नाथ धाम मंदिर में इस वर्ष भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी धूमधाम और भव्यता के साथ मनाई गई। जैसे ही रात्रि के बारह बजे श्रीकृष्ण जन्म की पावन घड़ी आई, पूरा मंदिर परिसर गगनभेदी नारों—“जय श्रीकृष्ण” और “राधे-राधे” से गूंज उठा। लाइटें बंद कर जब भगवान के अवतरण की रस्म पूरी हुई, तब पालने को झुलाकर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की परंपरा निभाई गई।
पूजा-अर्चना और विधिविधान
मंदिर के पुजारी आलोक मिश्रा ने वैदिक मंत्रोच्चार और शास्त्रीय विधानों के बीच पूजा सम्पन्न कराई। इस दौरान किरीबुरू के सीजीएम कमलेश राय एवं उनकी धर्मपत्नी सह महिला समिति की अध्यक्ष सुनीता राय बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित रहीं। सैकड़ों महिला और पुरुष भक्त उपवास रख, नए वस्त्र धारण कर और श्रृंगार कर पूजन में शामिल हुए।
मंदिर परिसर का सौंदर्य और सजावट
पूरे मंदिर को रंग-बिरंगी लाइटों, फूलों और तोरण से सजाया गया था। रातभर भक्तों की भीड़ उमड़ती रही। महिलाएं मंगल गीत गाती हुईं नजर आईं तो बच्चे भगवान के बाल रूप की झलक पाने को व्याकुल थे। वातावरण में भक्ति और उत्साह का अद्भुत संगम दिखाई दिया।
ऐतिहासिक और पौराणिक पृष्ठभूमि
जन्माष्टमी केवल धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि यह भारतीय इतिहास और संस्कृति में विशेष महत्व रखती है। द्वापर युग में जब अत्याचार और अधर्म चरम पर था, तब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण रूप में अवतार लिया। मथुरा की कारागार में जन्मे बालक कृष्ण ने अत्याचारी कंस का वध कर धर्म की स्थापना की और गीता के उपदेश के माध्यम से मानवता को धर्म, कर्म और सत्य का मार्ग दिखाया।
श्रीमद्भागवत और महाभारत के अनुसार कृष्ण का जन्म केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं बल्कि धर्म और अधर्म के संघर्ष का प्रतीक है। यही कारण है कि भारतवर्ष ही नहीं, विदेशों तक में जन्माष्टमी पर्व आस्था और उत्साह से मनाया जाता है।
किरीबुरू में जन्माष्टमी की परंपरा
किरीबुरू का यह पर्व केवल पूजा-अर्चना तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां की सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा का भी हिस्सा बन चुका है। लोकेश्वर नाथ धाम मंदिर वर्षों से कृष्ण जन्माष्टमी का प्रमुख केंद्र रहा है। स्थानीय लोग मानते हैं कि यहां हर वर्ष का यह आयोजन पूरे क्षेत्र में सामुदायिक एकता और धार्मिक उत्सवधर्मिता का प्रतीक है।
रात्रि जागरण और भजन संध्या
पूजा-अर्चना के बाद भक्तों ने देर रात तक भजन-कीर्तन किया। “गोविंदा आला रे”, “राधे-राधे” जैसे भजनों पर भक्त झूमते रहे। इस मौके पर महिला मंडल और युवा समिति के सदस्यों ने भक्ति संगीत की प्रस्तुति दी।
भक्तों की आस्था और विश्वास
भक्तों का मानना है कि कृष्ण जन्माष्टमी पर व्रत रखने और मंदिर दर्शन से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। कई भक्त इस पर्व को संतान सुख और परिवार की उन्नति के लिए विशेष रूप से मनाते हैं।
सामाजिक और सांस्कृतिक संदेश
यह पर्व केवल धार्मिक महत्व का नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी सार्थक है। कृष्ण के बाल स्वरूप को देखने आने वाले बच्चे उनसे नटखटपन, साहस और मित्रता की सीख पाते हैं। वहीं, गीता का उपदेश—“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”—जीवन में कर्तव्यपथ पर डटे रहने की प्रेरणा देता है।