रिपोर्ट: शैलेश सिंह/संदीप गुप्ता।
रविवार को झारखंड, बिहार आदि राज्यों के ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में सुहागिन महिलाओं ने आस्था और श्रद्धा के साथ जितिया पर्व धूमधाम से मनाया। यह पर्व विशेष रूप से पुत्रों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के लिए मनाया जाता है।

निर्जला उपवास और पूजा-अर्चना का आयोजन
जितिया पर्व के दिन महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं। सुबह से ही पारंपरिक रीति-रिवाज के अनुसार महिलाएं नदी, तालाब और कुओं में स्नान कर पूजा-अर्चना में जुटी। भगवान जीमूतवाहन की विशेष आराधना की गई। दिनभर बिना जल और अन्न ग्रहण किए व्रती महिलाएं उपवास करती रहीं। शाम के समय पारण के साथ सामूहिक कथा श्रवण का आयोजन किया गया।
पारंपरिक वेशभूषा और सामाजिक सहभागिता
व्रती महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा पहनकर अपने गांव-गांव और मोहल्लों में एक-दूसरे के घर पहुंचकर व्रत कथा साझा करती नजर आईं। जगह-जगह सामूहिक पूजा का आयोजन हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं एकत्रित होकर भगवान के समक्ष अपनी मनोकामना प्रकट करती रहीं।

धार्मिक और सांस्कृतिक माहौल का विस्तार
जितिया पर्व के चलते बाजार और आसपास के गांवों में पूरे दिन धार्मिक एवं सांस्कृतिक माहौल बना रहा। विशेष धार्मिक गीत, व्रत कथा पाठ और भजन-कीर्तन के माध्यम से पूरे क्षेत्र में उत्सव का रंग छाया रहा।
जितिया पर्व का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
जितिया पर्व का प्राचीन ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व है। यह पर्व विशेष रूप से माता जीमूतवाहिनी की पूजा से जुड़ा हुआ है, जिन्हें संतानों की सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। कथा के अनुसार, एक समय था जब माता जीमूतवाहिनी ने कठिन तपस्या करके भगवान जीमूतवाहन से वरदान प्राप्त किया था कि उनके पुत्र कभी संकट में न पड़ें और लंबी उम्र पाएं। इस विश्वास के साथ सुहागिन महिलाएं हर साल निर्जला उपवास रखकर अपने पुत्रों की रक्षा और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। यह पर्व मातृ शक्ति की गहरी आस्था का प्रतीक भी माना जाता है, जो परिवार और समाज की संरक्षा का कार्य करता है।
समाज में महिला सशक्तिकरण का प्रतीक
जितिया पर्व केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि महिलाओं की संकल्प शक्ति, त्याग और सशक्तिकरण का भी प्रतीक बन चुका है। इसमें महिलाएं न केवल अपने पुत्रों की भलाई की कामना करती हैं, बल्कि सामाजिक एकता, सहयोग और पारिवारिक सद्भाव का संदेश भी फैलाती हैं।















