रिपोर्ट – शैलेश सिंह
बराईबुरू। सारंडा जंगल के सीने में बसी टाटा स्टील की विजय–टू आयरन ओर माइंस पिछले तीन हफ्तों से बंद है। 17 अगस्त को खदान का लीज खत्म होते ही कंपनी प्रबंधन ने सारे कामकाज रोक दिए। नतीजा यह हुआ कि यहां काम करने वाले करीब 800 मजदूरों के हाथ से रोज़ी-रोटी छिन गई। इन मजदूरों पर आश्रित हजारों परिवारों का जीवन अचानक अंधेरे में डूब गया है।
3 सितम्बर को झारखंड मजदूर यूनियन, बराईबुरू इकाई के अध्यक्ष दीनबंधु पत्रों और महासचिव दुलाल चांपिया के नेतृत्व में मजदूरों ने महाप्रबंधक को मांग पत्र सौंपा। उनकी आवाज़ कांप रही थी लेकिन हौसला टूटा नहीं था। “हमें काम चाहिए, हमें जीने का सहारा मत छीनो”, यह उनके ज्ञापन की सबसे बड़ी पुकार थी।
खदान बंद, भूख का साया
18 अगस्त से कंपनी ने अपने अधीन कार्यरत 8 वेंडरों को साफ कह दिया कि मजदूरों को खदान में न भेजें। इसके बाद से न सिर्फ मजदूर बल्कि उनसे जुड़े वाहन मालिक, चालक, हेल्पर, छोटे वेंडर, आस-पास के दुकानदार तक सब बेरोजगार हो गए। गांव की गलियों में सन्नाटा है, चूल्हे बुझने लगे हैं और पलायन का दर्द एक बार फिर बढ़ने लगा है।
CSR योजनाएं भी ठप
कंपनी की ओर से चलाए जाने वाले CSR कार्य – मेडिकल कैंप, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं भी ठप हो गई हैं। मजदूरों का कहना है कि यह खदान सिर्फ आय का साधन नहीं थी, बल्कि हमारी उम्मीद, हमारी जिन्दगी का सहारा थी।
पूर्व विधायक का समर्थन
पूर्व विधायक मंगल सिंह बोबोंगा भी मजदूरों के साथ खड़े हुए। उन्होंने सरकार से अपील की कि वह इस खदान को जल्द खोले। उनका कहना है कि “सरकार की चुप्पी मजदूरों के आंसुओं को और गहरा कर रही है।”
मुख्यमंत्री से गुहार
यूनियन नेताओं ने कहा है कि वे मुख्यमंत्री समेत संबंधित सभी अधिकारियों को पत्र लिखकर गुहार लगाएंगे। मजदूरों की मांग है कि खदान को तुरंत खोला जाए ताकि हजारों परिवार फिर से अपनी जिंदगी पटरी पर ला सकें।
मजदूरों की मार्मिक अपील
आज मजदूरों के पास कहने को सिर्फ एक ही बात है –
“हम भूखे मर जाएंगे, पलायन कर जाएंगे, लेकिन क्या सरकार और कंपनी हमारे बच्चों की आंखों के आंसू देख पाएंगे? खदान हमारी जिंदगी है, इसे खोल दीजिए।”