जंगल के सीने में उठता सन्नाटा
लेखक : शैलेश सिंह
झारखंड का सारंडा जंगल—एशिया का सबसे बड़ा साल वृक्षों का वन। यह जंगल सिर्फ हरियाली का प्रतीक नहीं, बल्कि खनिज संपदा का खजाना भी है। लौह अयस्क की खदानों पर टिका पूरा लोहांचल क्षेत्र देश की इस्पात नगरी जमशेदपुर से लेकर अंतरराष्ट्रीय बाजार तक की औद्योगिक धड़कन है।
लेकिन इसी सारंडा के हृदय में बसा टाटा स्टील का विजय–टू आयरन ओर माइंस अब एक बड़े संकट की ओर बढ़ रहा है। 17 अगस्त 2025 को अर्थात आज रात खदान की लीज समाप्त हो जाएगी। इसका मतलब है कि अगले ही दिन से हज़ारों मज़दूर, वाहन मालिक, दुकानदार और परिवार एक अनिश्चित अंधेरे में धकेल दिए गए।
यह सिर्फ एक खदान बंद होने की कहानी नहीं—बल्कि आर्थिक भूचाल, सामाजिक संकट और पर्यावरणीय असंतुलन की आहट है।
विजय–टू खदान : एक परिचय
विजय–टू खदान पिछले कई दशकों से सारंडा के रोजगार और अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार रही है। यहां से निकला लौह अयस्क टाटा स्टील की उत्पादन इकाइयों के लिए रीढ़ की हड्डी है।
- सीधे तौर पर : 1,500 से अधिक मजदूरों का रोजगार
- परोक्ष रूप से : 4,000–5,000 परिवारों की आजीविका
- 600 वाहन प्रतिदिन माल ढुलाई में सक्रिय
- आसपास के होटल, ढाबे, पेट्रोल पंप, मरम्मत की दुकानें, किराना और कपड़ा बाजार इस खदान से चल रहे हैं
यानी, इस खदान का बंद होना सिर्फ एक औद्योगिक ठहराव नहीं बल्कि पूरे इलाके की जीवनरेखा पर ताला लगना है।
मजदूरों की बेचैनी : “पेट खाली होगा तो क्या करेंगे?”
खदान में काम करने वाले ज्यादातर मज़दूर संविदा पर वेंडर कंपनियों के अधीन काम करते हैं। कोई बीएस माइनिंग से जुड़ा है, कोई क्रेशर या श्री साईं कंपनी से।
एक मजदूर का दर्द सुनिए—
“हम 15 साल से यही कर रहे हैं। मजदूरी से ही बच्चों की पढ़ाई और घर का चूल्हा चलता है। अब अचानक कह दिया कि काम बंद होगा। क्या हमारे बच्चे स्कूल छोड़ देंगे? क्या हम फिर लकड़ी काटकर बेचें?”
मजदूरों की यह आवाज सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि हज़ारों घरों की चीख है।
वाहन मालिकों का संकट : बैंक जब्ती की तलवार
करीब 600 छोटे-बड़े ट्रक और डंपर इस खदान से जुड़े हैं। इन वाहनों के मालिकों ने बैंक से लोन लेकर गाड़ियां खरीदी हैं। हर महीने 40–50 हज़ार की EMI देनी पड़ती है।
एक ट्रक मालिक की व्यथा—
“गाड़ी खड़ी हो जाएगी तो बैंक वाले कब तक रुकेंगे? सीधे ज़ब्ती करेंगे। ऊपर से घर के खर्च अलग। हम तो सड़क पर आ जाएंगे।”
वाहन मालिकों के साथ-साथ चालक, हेल्पर और मेकैनिक भी बेरोजगार होंगे। इसके साथ जुड़े टायर-पार्ट्स, डीज़ल पंप और मरम्मत की दुकानें भी चौपट हो जाएंगी।
बाजार और छोटे व्यापारियों पर असर
सारंडा का पूरा स्थानीय बाजार—किराना, कपड़ा, सब्ज़ी, राशन, होटल, ढाबे—इन मजदूरों और वाहन चालकों पर निर्भर है। मजदूरों की मजदूरी रुकते ही इन दुकानों की बिक्री आधी रह जाएगी।
एक दुकानदार कहता है—
“हर महीने मज़दूर उधार में सामान ले जाते थे और महीने के अंत में पैसा चुका देते थे। अब अगर उनकी मजदूरी बंद होगी तो हमसे भी उधार कौन चुकाएगा?”
सामाजिक असर : बेरोज़गारी से अपराध की ओर?
सारंडा पहले से ही अवैध लकड़ी कटाई और खनिज तस्करी की चपेट में है। रोजगार खत्म होने पर बेरोजगार युवा मजबूरी में लकड़ी तस्करी या अपराध की ओर मुड़ सकते हैं।
एक ग्रामीण की बात में कड़वी सच्चाई है—
“जब पेट खाली होता है तो आदमी कोई भी रास्ता पकड़ लेता है। सरकार को समझना होगा कि बेरोजगारी सिर्फ जेब खाली नहीं करती, यह जंगल और समाज को भी बरबाद करती है।”
शिक्षा और परिवार पर गहरी चोट
सबसे अधिक असर बच्चों की शिक्षा पर पड़ सकता है। मजदूर वर्ग की महिलाएं रोते हुए कहती हैं—
“बच्चों की फीस मजदूरी से ही भरते हैं। अगर मजदूरी बंद होगी तो बच्चे स्कूल छोड़ देंगे। क्या हमारे बच्चों का भविष्य अंधेरे में जाएगा?”
इस स्थिति से ग्रामीण इलाकों में बाल श्रम बढ़ने और लड़कियों की पढ़ाई छूटने का खतरा भी बढ़ जाएगा।
सरकार और कंपनी के बीच पेच
टाटा स्टील लगातार राज्य सरकार से लीज नवीनीकरण की मांग और संवाद कर रही है। लेकिन प्रक्रिया दिसुम गुरु शिबू सोरेन की मौत के बाद मुख्यमंत्री की पारिवारिक और राजनीतिक व्यस्तताओं के बीच अटक गई है। कंपनी के महाप्रबंधक राजीव कुमार मिश्रा अनुसार सरकार से निरंतर संवाद जारी है। समस्या का समाधान कब तक होगा, कहा नहीं जा सकता है। जब तक नहीं होता है, तब तक माइनिंग ऑपरेशन बंद रहेगा।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि—
“सरकार और कंपनी की बातचीत में जो देरी हो रही है, उसका खामियाज़ा हम भुगत रहे हैं। रोज़-रोज़ डर में जीना पड़ रहा है।”
व्यापक आर्थिक असर
अगर विजय–टू खदान लंबे समय तक बंद रही तो—
- लोहा उत्पादन प्रभावित होगा
- स्थानीय स्तर पर व्यापार ठप होगा
- पलायन बढ़ेगा, लोग दूसरे राज्यों की ओर जाएंगे
- जंगल और प्राकृतिक संसाधनों पर अवैध दबाव बढ़ेगा
- बैंकों की NPA दर बढ़ेगी क्योंकि वाहन मालिक किस्त नहीं चुका पाएंगे
समाधान की राह
विशेषज्ञों का मानना है कि संकट गहराने से पहले सरकार और कंपनी को ठोस कदम उठाने होंगे।
- लीज नवीनीकरण की प्रक्रिया तेज की जाए
- मजदूरों और वाहन मालिकों के लिए राहत पैकेज बनाया जाए
- स्थानीय युवाओं के लिए स्किल ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू किए जाएं
- बैंकों को EMI पर मोराटोरियम देने के निर्देश दिए जाएं
- जंगल में वैकल्पिक रोजगार के अवसर विकसित किए जाएं—जैसे वनोपज आधारित उद्योग और इको-टूरिज्म
निष्कर्ष : सारंडा का भविष्य दांव पर
विजय–टू खदान केवल एक औद्योगिक परियोजना नहीं है। यह सारंडा के हजारों परिवारों की जीवनरेखा है। यहां की मजदूरी सिर्फ चूल्हा नहीं जलाती, बल्कि बच्चों की पढ़ाई, गांव की दुकानें, स्थानीय परिवहन और पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को सहारा देती है।
अगर यह खदान बंद हुई तो इसका असर केवल मजदूरों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि जंगल, समाज और आने वाली पीढ़ियों तक गूंजेगा।
सवाल यही है कि क्या सरकार और कंपनी समय रहते इस खामोशी के तूफ़ान को थाम पाएंगे, या फिर सारंडा एक और आर्थिक आपदा का गवाह बनेगा?