आदिवासी समाज की पहचान और संस्कृति को मिली नई ऊंचाई, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष को दिया आभार
सरायकेला।पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन ने कहा कि भारत में अंग्रेजी शासन के खिलाफ सबसे पहले विद्रोह का बिगुल फूंकने वाले बाबा तिलका मांझी, वीर सिदो-कान्हू और पंडित रघुनाथ मुर्मू जैसे महान विभूतियों की भाषा अब संसद तक पहुंच चुकी है।
उन्होंने कहा कि अब लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही का अनुवाद संथाली भाषा में भी उपलब्ध होगा, जो आदिवासी समाज के लिए गर्व का विषय है।
मोदी और बिरला को धन्यवाद
पूर्व मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि संसद में संथाली भाषा को यह सम्मान दिलाकर करोड़ों आदिवासियों का मान बढ़ाया गया है।
सोशल मीडिया पर साझा किया भावनात्मक संदेश
चम्पाई सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (ट्विटर) पर लिखा कि भारतीय संसद में संथाली भाषा की एंट्री ने आदिवासी समाज और संथाली बोलने वाले करोड़ों लोगों को गर्व से भर दिया है। उन्होंने संसद में नियुक्त संथाली अनुवादकों को शुभकामनाएं भी दीं।
संस्कृति और भाषा का गौरव
सोरेन ने कहा कि भाषा, संस्कृति और लोक परंपराएं आदिवासी समाज का अभिन्न हिस्सा रही हैं। उन्होंने याद दिलाया कि अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में संथाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था, जिसके बाद से इस भाषा के विकास की गति तेज हुई।
संथाली की विकास यात्रा में नया अध्याय
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि संसद में संथाली की उपस्थिति सिर्फ एक औपचारिक कदम नहीं, बल्कि यह आदिवासी पहचान और अस्तित्व की मान्यता है। उन्होंने इसे विकास यात्रा का मील का पत्थर बताते हुए कहा कि इससे आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा मिलेगी।