पेट की आग से झुलसते घर-परिवार, मजदूर बोले – खदानें खोलो, रोजगार दो वरना पलायन ही एकमात्र विकल्प
रिपोर्ट: शैलेश सिंह
खदान बंद और बेरोजगार हुए सैकड़ों मजदूर
झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले के घने और रहस्यमयी सारंडा जंगल में बसा विजय–टू आयरन ओर माइंस अब खामोश है। 17 अगस्त की मध्य रात्रि को टाटा स्टील की इस खदान की लीज खत्म हो गई और इसके साथ ही वहां काम करने वाले 800 मजदूरों की रोज़ी-रोटी भी छिन गई।
अब तक जहां सुबह–सुबह हाईवा गाड़ियों की गड़गड़ाहट सुनाई देती थी, मजदूरों के चेहरों पर पसीने के साथ उम्मीद की चमक झलकती थी, वहीं अब वीरानी पसरी है। मजदूर हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं और उनके परिवारों की रसोई में चूल्हा जलाने तक की चिंता गहरा गई है।
बराईबुरु में हुई मजदूरों की बैठक
27 अगस्त को खदान से बेरोजगार हुए दर्जनों मजदूर बराईबुरु सामुदायिक भवन में जुटे। यह बैठक महज़ चर्चा नहीं, बल्कि लाचारी से उपजा गुस्सा और भविष्य की राह तय करने का प्रयास थी। मजदूरों ने कहा कि अगर जल्द ही कोई समाधान नहीं निकला तो उन्हें सड़क पर उतरना होगा।
निर्णय लिया गया कि आगामी 5 सितंबर को बराईबुरु के हाथी चौक पर शांतिपूर्ण धरना और प्रदर्शन किया जाएगा। मजदूरों की मांग साफ है – टाटा स्टील सहित क्षेत्र की सभी बंद खदानों को तत्काल खोला जाए और बेरोजगार हुए सभी मजदूरों को फिर से काम दिया जाए।
“भूख ने घर-घर का चैन छीन लिया है”
बैठक में शामिल मजदूरों की आंखों में आंसू थे और शब्दों में दर्द। उन्होंने कहा –
“इस खदान के बंद होने से सिर्फ हम 800 मजदूर ही नहीं, हजारों लोग प्रभावित हुए हैं। हमारे साथ हाईवा मालिक, चालक, हेल्फर, दुकानदार और छोटे-छोटे कारोबारी सभी बर्बाद हो गए हैं। भूख ने घर-घर का चैन छीन लिया है।”
कुछ मजदूरों ने बताया कि उनके बच्चों के स्कूल से नाम काटने की नौबत आ गई है। कई परिवार पलायन की तैयारी में हैं, क्योंकि खाली पेट बच्चों को देखना अब सहा नहीं जा रहा।
पहले भी बंद हुई थीं खदानें, हुआ था पलायन
मजदूरों ने याद दिलाया कि यह संकट नया नहीं है। इससे पहले भी जब कई खदानें एक साथ बंद हुई थीं तो हजारों लोग बेरोजगार हुए थे और गांव से भारी संख्या में पलायन हुआ था। वे बोले –
“उस वक्त भी परिवार टूटे, बच्चे पढ़ाई छोड़कर मजदूरी करने लगे और बहुतों ने दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर लिया। इस बार भी हालात वैसी ही हो रही है। सरकार की नीतियों ने हमें बर्बादी की राह पर धकेल दिया है।”
सरकार से सीधी अपील: रोजगार दो, वरना हम बेघर हो जाएंगे
मजदूरों की सबसे बड़ी शिकायत यह है कि सरकार नई नौकरियां देने की बात तो करती है, लेकिन जो खदानें चल रही थीं उन्हें बचाने का कोई प्रयास नहीं करती। उनका कहना है कि –
“अगर सरकार नया रोजगार नहीं दे सकती तो कम-से-कम पुराना तो छीनने का काम न करे। खदानें बंद कर दी जाती हैं और हम मजदूर सड़क पर आ जाते हैं। सरकार का फर्ज है कि हमें फिर से रोजगार से जोड़े।”
संकट सिर्फ मजदूरों तक सीमित नहीं
विजय–टू माइंस के बंद होने का असर सिर्फ 800 मजदूरों तक सीमित नहीं है। आसपास की पूरी अर्थव्यवस्था पर इसका सीधा असर पड़ा है।
- हाईवा मालिक और चालक अब गाड़ियों को खड़ा कर चुके हैं।
- हेल्फर और मैकेनिक बेरोजगार हो गए हैं।
- स्थानीय दुकानदार, जो मजदूरों पर निर्भर थे, उनके कारोबार ठप हो गए हैं।
- ग्रामीण बाजार की रौनक गायब है।
यह पूरा क्षेत्र खदानों पर निर्भर था। जैसे ही खदान बंद हुई, पूरा इलाका मानो आर्थिक रूप से थम गया।
“पेट की आग आदमी को कुछ भी बना देती है”
बैठक में मजदूरों ने भावुक होकर कहा –
“पेट की आग आदमी को क्या-क्या नहीं बना देती। जब रोजगार छिनता है तो आदमी अपराध की राह पकड़ लेता है, पलायन करता है, परिवार छोड़ देता है। अगर सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो यहां के हालात बिगड़ सकते हैं।”
यह बयान सिर्फ चेतावनी नहीं, बल्कि उस दर्द का बयान है जिसे रोज़ भूख से जूझते लोग महसूस कर रहे हैं।
महिलाओं और बच्चों की स्थिति सबसे गंभीर
मजदूरों की पत्नियां कहती हैं कि अब घर का चूल्हा जलाना मुश्किल हो गया है। बच्चों की पढ़ाई, दवा, कपड़े सब प्रभावित हैं। कुछ ने तो अपने बच्चों को स्कूल से निकालकर रिश्तेदारों के पास भेज दिया है ताकि वे वहां किसी तरह पल सकें।
बराईबुरु से फैल रही है आंदोलन की आंच
5 सितंबर को होने वाले धरने की तैयारी अब तेज हो चुकी है। मजदूरों ने कहा है कि यह आंदोलन सिर्फ शुरुआत होगी। अगर सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानीं तो आंदोलन को जिला और फिर राज्य स्तर तक फैलाया जाएगा।
बराईबुरु से उठी यह आवाज़ धीरे-धीरे पूरे सारंडा में गूंजने लगी है।
सवालों के घेरे में सरकार और टाटा स्टील
लोग पूछ रहे हैं कि जब टाटा स्टील जैसी बड़ी कंपनी सालों से इस क्षेत्र की खदानों से मुनाफा कमा रही थी, तो अचानक लीज खत्म होने पर मजदूरों के भविष्य की जिम्मेदारी क्यों नहीं ली गई? लीज से जुड़ी मामले का हल क्यों नहीं किया गया !
साथ ही, राज्य सरकार पर भी सवाल उठ रहे हैं कि उसने पहले से तैयारी क्यों नहीं की? मजदूरों को मुआवजा या वैकल्पिक रोजगार क्यों नहीं दिया गया?
भविष्य अनिश्चित, लेकिन उम्मीद बाकी
आज मजदूरों का भविष्य अंधेरे में है। रोज़-रोज़ के संघर्ष ने उन्हें तोड़ दिया है, लेकिन वे अभी भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उनकी आवाज़ सरकार तक पहुंचेगी और कोई समाधान निकलेगा।
उनकी मांग बस इतनी है –
- खदानें खोली जाएं
- रोजगार दिया जाए
- पलायन और भूख से बचाया जाए
निष्कर्ष
विजय–टू माइंस का बंद होना सिर्फ एक खदान का ठहराव नहीं, बल्कि हजारों परिवारों के सपनों और जिंदगी पर लगा ताला है। मजदूरों के चेहरे पर गुस्सा है, आंखों में आंसू हैं और पेट में भूख है।
अगर सरकार और कंपनियां मिलकर जल्द समाधान नहीं निकालतीं, तो यह संकट न केवल बेरोजगारी बल्कि सामाजिक असंतुलन, अपराध और बड़े पैमाने पर पलायन का कारण बन जाएगा।
आज सारंडा की आवाज़ सिर्फ यही कह रही है – “रोज़गार दो, खदानें खोलो, हमें भूख और पलायन से बचाओ।”