दुर्गा पूजा से पहले खदान नहीं खुली तो सड़क-रेल चक्का जाम की चेतावनी
रिपोर्ट: शैलेश/संदीप।
टाटा स्टील की विजय-II खदान को चालू कराने की मांग धीरे-धीरे एक जनांदोलन का रूप ले चुकी है। शुक्रवार को बराईबुरू के हाथी चौक पर ग्रामीणों, ट्रक मालिकों, ड्राइवर-खलासियों और मजदूरों ने प्रखंड प्रमुख पूनम गिलुवा के नेतृत्व में जोरदार धरना-प्रदर्शन किया। हाथों में बैनर-पोस्टर लिए लोग सरकार और कंपनी के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे। माहौल में गुस्सा और बेबसी दोनों झलक रही थी।
खदान बंद, भूखमरी का संकट
धरना स्थल पर खड़े ग्रामीण मुंडाओ, मानकी ने साफ चेतावनी दी –
“यदि दुर्गा पूजा से पहले खदान चालू नहीं हुई, तो सड़क और रेल चक्का जाम होगा। तब सरकार और कंपनी को हमारी पीड़ा समझनी पड़ेगी।”
ग्रामीणों ने बताया कि खदान बंद होने से हजारों परिवार बेरोजगार हो चुके हैं। जिन ट्रकों पर रोज़ लोहे का अयस्क लदा करता था, वे अब महीनों से खड़े-खड़े जंग खा रहे हैं। मजदूर जिनकी रोजी खदान से चलती थी, अब काम की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं।
सारंडा क्षेत्र में भुखमरी की स्थिति बन गई है। गाँव की महिलाएँ अपने आँगन में चूल्हा जलाने के लिए तरस रही हैं। बच्चों की पढ़ाई छूट गई है, क्योंकि फीस भरने के पैसे नहीं हैं। मजबूरन लोग अपने गाँव छोड़कर दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं।
सड़क पर आए ट्रक मालिक और मजदूर
धरना-प्रदर्शन में सिर्फ ग्रामीण ही नहीं, बल्कि ट्रक मालिक, ड्राइवर और खलासी भी शामिल हुए। इनका कहना था कि खदान बंद होने से गाड़ियों पर किस्त का बोझ बढ़ गया है।
एक ट्रक मालिक की पीड़ा थी –
“बैंक का कर्ज सिर पर है। ट्रक खड़ा है, आय नहीं हो रही। घर चलाना मुश्किल हो गया है। अगर खदान नहीं खुली तो हमें सब कुछ बेचकर बाहर जाना पड़ेगा।”
ड्राइवर-खलासी भी यही सवाल कर रहे थे कि जब तक खदानें बंद रहेंगी, तब तक उनके हाथों को काम कहाँ से मिलेगा?
उनकी मांगें स्पष्ट थीं –
- खदान तुरंत चालू हो।
- स्थानीय युवाओं को रोजगार में प्राथमिकता मिले।
- क्षेत्रीय विकास योजनाएँ लागू हों।
मंत्री दीपक बिरुवा का घेराव
धरना के बीच जब परिवहन मंत्री दीपक बिरुवा, विधायक सुखराम उरांव हाथी चौक पहुँचे, तो ग्रामीणों ने उन्हें घेर लिया और ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में लिखा था –
“खदान बंद होने से रोजगार छिन गया है। आजीविका पर गहरा संकट है। हमारे बच्चे भूखे सोने को मजबूर हैं। हमारी आवाज सुनी जाए।”
ग्रामीणों ने मंत्री को घेरते हुए साफ कहा कि अब सिर्फ आश्वासन से काम नहीं चलेगा। अगर खदान नहीं खुली, तो हम सड़क और रेल दोनों ठप कर देंगे।
मंत्री बिरुवा ने भीड़ को शांत करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि ग्रामीणों की मांगें जायज़ हैं और इसे सरकार और संबंधित विभागों तक पहुँचाया जाएगा। उन्होंने भरोसा दिलाया कि समाधान निकलेगा, लेकिन लोगों के चेहरे पर भरोसे से ज्यादा गुस्सा साफ झलक रहा था।
30 गांवों की गूँज
धरना-प्रदर्शन में 30 गाँवों के प्रतिनिधि मौजूद थे। इनमें सारंडा पीढ़ मानकी लागुड़ा देवगम, बोकना गाँव मुंडा विक्रम चाम्पिया, किरीबुरु पूर्वी मुखिया मंगल सिंह गिलुवा, नोवामुंडी प्रखंड प्रमुख पूनम गिलुवा, मुंडा कानूराम देवगम, मुंडा कुसू देवगम, उप मुखिया रमेश हांसदा, मुंडा रोया सिद्धू, सोनापी गाँव मुंडा प्रीति सुरीन, समूह हांसदा, धर्मेंद्र गुप्ता, रूपा खान, बुधराम पूर्ति, जुनू पूर्ति समेत अनेक जनप्रतिनिधि और सैकड़ों ग्रामीण शामिल हुए।
आंदोलन सुबह 9 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक चला और इस दौरान प्रशासनिक हलचल तेज रही।
भूख और पलायन की मार्मिक तस्वीर
सारंडा के गाँवों में आज स्थिति बेहद खराब है। मजदूर परिवारों की महिलाएँ कहती हैं कि अब उन्हें बच्चों को पेट भरने के लिए सिर्फ चावल और नमक पर गुज़ारा करना पड़ रहा है।
कई घरों में दो जून का खाना भी मुश्किल से नसीब हो रहा है। ट्रक मालिकों की गाड़ियाँ धूल फाँक रही हैं। कई लोग झारखंड छोड़कर ओडिशा, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र जा रहे हैं, जहाँ उन्हें दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ रही है।
खदान की बंदी ने पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को हिला दिया है।
सवालों के घेरे में सरकार और कंपनी
ग्रामीणों का गुस्सा सिर्फ सरकार पर नहीं, बल्कि टाटा स्टील पर भी है। लोगों का कहना है कि कंपनी ने इस क्षेत्र से दशकों तक खनन कर अरबों का मुनाफा कमाया, लेकिन अब जब रोजगार देने की बारी आई तो खदानें बंद कर दी गईं।
गुस्साए ग्रामीण पूछते हैं –
“क्या हमारा जंगल सिर्फ लूटने के लिए है? क्या हमारी ज़िंदगी की कोई कीमत नहीं?”
निष्कर्ष : अब आर-पार की लड़ाई
धरना-प्रदर्शन के बाद साफ है कि विजय-II खदान का मुद्दा सिर्फ रोजगार का नहीं, बल्कि अस्तित्व का सवाल बन गया है।
ग्रामीणों की चेतावनी गंभीर है – अगर दुर्गा पूजा तक खदान चालू नहीं हुई, तो सड़क-रेल चक्का जाम से लेकर उग्र आंदोलन तक सबकुछ होगा।
सरकार और कंपनी के सामने अब यही सवाल है –
👉 क्या वे सारंडा की भूखी जनता की पुकार सुनेंगे, या फिर हालात को और विस्फोटक होने देंगे?