गुवा संवाददाता।
सारंडा के हजारों ग्रामीणों की उम्मीदों का पुल आज भी अधूरा खड़ा है। दो साल बीत जाने के बावजूद प्रखंड मनोहरपुर के पंचायत दीधा, राजस्व ग्राम दिकूपोंगा और उसरूईया को जोड़ने वाला यह महत्वपूर्ण पुल निर्माण अधर में लटका है। लागत करोड़ों में, लेकिन प्रगति ‘शून्य’—यही हकीकत है इस प्रमुख परियोजना की, जिसे सारंडा के लोग अपनी जीवनरेखा बताते हैं।

2022-23 में शुरू हुई थी परियोजना
यह पुल ग्रामीण विकास विभाग (ग्रामीण कार्य मामले), कार्य प्रमंडल चक्रधरपुर द्वारा वित्तीय वर्ष 2022-23 में स्वीकृत किया गया था।
परियोजना का पैकेज नंबर है:
JH-LWE-BR।।-WSM-01-(JH-22-VIS-Br-01)
इसे ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा फंडिंग प्राप्त है। स्थानीय लोगों को उम्मीद थी कि यह पुल बनते ही आवागमन, स्वास्थ्य सेवाएँ, शिक्षा, व्यापार और रोजगार के नए रास्ते खुलेंगे। लेकिन अभी तक केवल वादे और अधूरे ढांचे ही दिख रहे हैं।
बारला का आरोप — “संवेदक की मनमानी, अधिकारियों की चुप्पी”
भारत आदिवासी पार्टी, पश्चिम सिंहभूम के जिलाध्यक्ष सुशील बारला ने सारंडा दौरे के बाद कहा—
“संवेदक की मनमानी और विभागीय अधिकारियों की उदासीनता के कारण यह पुल दो साल से अधूरा पड़ा है।”
बारला ने आरोप लगाया कि निर्माण में
- प्राक्कलन का पालन नहीं हुआ,
- मानक गुणवत्ता की सामग्री का उपयोग नहीं किया गया,
- और कार्य लगभग एक साल से पूरी तरह ठप है।
15 जुलाई 2023 को रुका काम
बारला ने बताया कि 15 जुलाई 2023 को निवर्तमान सांसद द्वारा निरीक्षण के दौरान अनियमितताएं पकड़ में आने पर कार्य रोक दिया गया था। लेकिन कार्रवाई और पुनः कार्य प्रारंभ कराने के बजाय फाइलों में मामला दबा रह गया।

ग्रामीण परेशान… बरसात में जीवन संकट
दो साल से पुल अधूरा होने से
- स्कूली बच्चों,
- मरीजों,
- किसानों और व्यापारियों
को भारी परेशानी हो रही है। बरसात के दिनों में स्थिति गंभीर हो जाती है—गर्भवती महिलाओं और मरीजों को कंधे पर ले जाना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि पुल पूरा होता तो उनकी जिंदगी बदल जाती, लेकिन राजनीतिक घोषणाओं और सरकारी वादों में उनका भविष्य फंसा पड़ा है।
स्वतंत्र एजेंसी से जांच की मांग
सुशील बारला ने सरकार से मांग की—
“इस पुल निर्माण में भारी अनियमितता हुई है। दो वर्ष से अधूरा पड़ा है। इसकी उच्च स्तरीय जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए और दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो।”
उन्होंने कहा कि सारंडा के लोगों को जल्द से जल्द पुल का लाभ मिलता, तभी विकास की असली गूंज जंगल तक पहुंचेगी।
सवालों के घेरे में विभाग
- आखिर दो साल में पुल क्यों नहीं बन पाया?
- जनता की गाढ़ी कमाई से मिलने वाले सरकारी फंड का क्या हुआ?
- संवेदक और विभागीय अधिकारी जवाबदेह कब बनेंगे?
यह सवाल आज भी जमीन पर पड़े सीमेंट और छूटे लोहे के ढांचों की तरह हवा में तैर रहे हैं।















