एक प्रहरी का भव्य, शांत और मार्मिक विदाई
✍️ रिपोर्ट: शैलेश सिंह।
पुलिस सेवा में रहते हुए न जाने कितने अपराधियों से टकराए, कितने अभियानों का नेतृत्व किया, कितने लोगों के बीच न्याय और विश्वास का संदेश पहुँचाया – लेकिन जीवन की अंतिम घड़ी में अर्जुन सिंह सुंडी जी इतनी शांति से चले गए कि जैसे कोई ऋषि ध्यानावस्था में समाधि ले रहा हो। रांची के पुलिस लाइन परिसर में शनिवार को जब उनकी निर्जीव देह को अंतिम सलामी दी गई तो पूरा पुलिस महकमा, उनका परिवार और समाज अवाक रह गया।
अर्जुन सुंडी, जो हमेशा ऊर्जा और दृढ़ संकल्प का पर्याय माने जाते थे, उनका अचानक यूँ चले जाना हर किसी को भीतर से तोड़ गया।
जीवन की शुरुआत और संघर्ष का सफर
साल 1995 में जब वे पुलिस विभाग में शामिल हुए थे, तब शायद ही किसी ने सोचा था कि यह युवा पुलिस अधिकारी एक दिन पूरे विभाग के लिए प्रेरणा बनेगा। पश्चिमी सिंहभूम, लातेहार जैसे दुर्गम और नक्सल प्रभावित इलाकों में उन्होंने सेवा की, जहाँ हर कदम मौत से सामना होता था।
लेकिन अर्जुन सुंडी जी की सबसे बड़ी ताकत थी – उनका साहस और उनका सादगी भरा व्यवहार। वर्दी पहनते ही वे एक सख्त प्रहरी बन जाते, लेकिन वर्दी के बाहर वे आम आदमी की तरह सहज, सरल और हंसमुख दिखाई देते थे।
पुलिस सेवा में एक आदर्श नाम
तीन दशक की सेवा में उन्होंने कई संवेदनशील पोस्टिंग देखीं – कभी सारंडा के बीहड़ों में अभियान, तो कभी शहरी क्षेत्रों में कानून-व्यवस्था की चुनौती। वे जहां भी रहे, जनता और पुलिस के बीच पुल का काम करते रहे।
लातेहार में रहते हुए उन्होंने न सिर्फ अपराधियों के खिलाफ मोर्चा लिया, बल्कि कई सामाजिक कार्यों से भी जुड़े। बच्चों की पढ़ाई, गरीब परिवारों की मदद, और समाज में पुलिस की सकारात्मक छवि बनाने के प्रयास उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा रहे।
व्यक्तित्व की सादगी और मानवीयता
जो लोग उन्हें करीब से जानते थे, उनका कहना है कि अर्जुन सुंडी जी की सबसे बड़ी पहचान उनकी सादगी थी। वे कभी भी अपने पद और वर्दी का दिखावा नहीं करते थे।
अचानक चला जाना, गहरी पीड़ा
22 अगस्त की शाम रांची के पारस हॉस्पिटल से आई खबर ने सबको हिला दिया। परिवार पर मानो पहाड़ टूट पड़ा। सहकर्मी जो अभी कल तक उनके साथ हंसते-बोलते थे, स्तब्ध रह गए।
शनिवार को रांची पुलिस लाइन परिसर में उनकी स्मृति में सहकर्मियों ने शोक सभा की। हर किसी की आँखें नम थीं। कोई उन्हें “साहब” कहकर याद कर रहा था, तो कोई “भाई” कहकर।
सहकर्मियों और समाज की भावनाएँ
- एक जवान ने कहा – “सर हमेशा हमसे कहते थे कि पुलिस सिर्फ अपराधियों से लड़ने का नाम नहीं, बल्कि जनता की सेवा का भी नाम है। आज वे हमारे बीच नहीं, लेकिन उनकी सीख हमें हमेशा याद रहेगी।”
- एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा – “अर्जुन सुंडी जी जैसे लोग पुलिस विभाग की रीढ़ होते हैं। ईमानदारी, निष्ठा और मानवता – इन तीनों का संगम थे वे।”
स्मृतियों में अर्जुन सुंडी
आज जब लोग अर्जुन सुंडी जी को याद कर रहे हैं, तो हर कोई उनके साथ बिताए गए छोटे-छोटे लम्हों को साझा कर रहा है।
- किसी को उनकी सरल हंसी याद आ रही है।
- किसी को उनका कर्मठ अंदाज।
- किसी को उनका अनुशासन।
वे सिर्फ पुलिस अधिकारी नहीं थे, बल्कि समाज के लिए प्रेरणा थे।
अर्जुन सिंह सुंडी से जुड़ी घटनाक्रम और पारिवारिक पृष्ठभूमि।
लातेहार में सीआईडी विभाग में पदस्थापित चाईबासा के बड़ा गुईरा गांव निवासी पुलिस इंस्पेक्टर अर्जुन सिंह सुंडी का शुक्रवार की शाम रांची के पारस अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया। उनके निधन की खबर से पुलिस विभाग, सेल नगरी किरीबुरू–मेघाहातुबुरु समेत पूरे समाज में शोक की लहर दौड़ गई।
परिवार और रिश्तेदारी
स्व. अर्जुन सिंह सुंडी पांच भाइयों के बीच चौथे स्थान पर थे। उनकी चार बहने भी है।
- बड़े भाई राजेंद्र सुंडी LIC में कार्यरत हैं।
- हीरालाल सुंडी सेल, किरीबुरू से जुड़े हैं।
- मार्शल सिंह सुंडी गांव में रहते हैं।
- सबसे छोटे भाई अमर सिंह सुंडी सेल, मेघाहातुबुरु में कार्यरत हैं।
उनके जीजाजी विजय कुमार मेलगांडी, भाजपा के पूर्व नेता हैं और चक्रधरपुर में रहते हैं।
किरीबुरू से गहरा लगाव
अर्जुन सिंह सुंडी का बचपन और पढ़ाई किरीबुरू में ही हुई थी। यहां के लोग उनसे बेहद लगाव रखते थे। वे सिंहभूम हलचल संवाददाता के साथ भाई जैसा रिश्ता रखते थे और हमेशा गरीबों की मदद के लिए तत्पर रहते थे। हाल ही में उन्होंने नशे की हालत में पकड़े गए एक गरीब की मोटरसाइकिल छुड़वाने में सहयोग किया था।
बीमारी से जंग हार गए
अर्जुन सिंह सुंडी कैंसर से जूझ रहे थे। 20 दिन पहले ही उन्होंने कहा था – “अब काफी ठीक हो गया हूँ, यह बीमारी से जंग जीत जाऊँगा।” लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था, और वे अंततः यह जंग हार गए।
कर्तव्यनिष्ठ और मृदुभाषी अधिकारी
वे कर्तव्यनिष्ठ, मृदुभाषी और समाज से जुड़े अधिकारी थे। जहां भी सेवा दी, वहां के लोगों से उनका गहरा व्यक्तिगत संबंध बन गया। पुलिसिंग के साथ-साथ वे सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर शामिल रहते थे। उनका निधन पुलिस प्रशासन, परिवार और समाज सभी के लिए अपूरणीय क्षति है।
सेवा यात्रा
- वर्ष 1995 में बिहार कैडेट के रूप में छपरा के एक्मा थाना से सेवा की शुरुआत की।
- झारखंड गठन के बाद गोमिया (बोकारो), पश्चिम सिंहभूम में कार्य किया।
- वर्तमान में लातेहार में क्राइम ब्रांच इंस्पेक्टर के पद पर पदस्थापित थे।
परिवार में शोक का माहौल
स्व. सुंडी के परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटियां हैं। पिता का नाम हरिकृष्ण चंद्र मोहन सिंह सुंडी है।
श्रद्धांजलि और अंतिम संस्कार
रांची स्थित पुलिस लाइन में उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर और श्रद्धांजलि दी गई। इसके उपरांत उनका पार्थिव शरीर चाईबासा स्थित पैतृक गांव लाया गया, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया।
सिंहभूम हलचल न्यूज़ की ओर से श्रद्धांजलि
सिंहभूम हलचल परिवार अर्जुन सुंडी जी के आकस्मिक निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त करता है। वे न केवल एक जाबांज पुलिस अधिकारी थे, बल्कि इंसानियत और सादगी के जीवंत प्रतीक भी थे।
उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उनकी आत्मा को शांति मिले और परिवार को इस गहरे दुख को सहन करने की शक्ति मिले।
अंतिम संदेश
अर्जुन सुंडी जी चले गए, लेकिन उनकी यादें, उनकी सादगी और उनकी सेवा की गाथाएँ हमेशा जीवित रहेंगी।
वे सचमुच इस पंक्ति के हकदार हैं – “कुछ लोग मर कर भी जिंदा रहते हैं, क्योंकि उनकी स्मृतियाँ समाज की धड़कनों में बस जाती हैं।”