स्मारिका भेंट कर झारखंड की सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक आस्था को पहुंचाया नई ऊंचाई
सरायकेला-खरसावां।
भाजपा के वरिष्ठ नेता और समाजसेवी शैलेन्द्र सिंह ने अपने हालिया दिल्ली प्रवास में जिस तरह आदित्यपुर एमआईजी की ऐतिहासिक काली पूजा की स्मारिका राष्ट्रीय नेताओं को भेंट की, उसने न केवल झारखंड की सांस्कृतिक धरोहर को गौरव दिलाया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि धार्मिक परंपराएं किसी क्षेत्र की पहचान को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने का आधार होती हैं। शैलेन्द्र सिंह की यह पहल क्षेत्रवासियों में गर्व और सम्मान की भावना पैदा करने वाली रही।
आदित्यपुर की काली पूजा: एक जीवंत परंपरा
आदित्यपुर एमआईजी की काली पूजा का इतिहास कई दशकों पुराना है। हर वर्ष दीपावली के अवसर पर यहां मां काली की भव्य प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती है।
- श्रद्धालु मां काली से शक्ति, साहस और समृद्धि की कामना करते हैं।
- पूजा के दौरान सामाजिक समरसता और भाईचारे का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है।
- यह आयोजन धीरे-धीरे केवल आदित्यपुर तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे कोल्हान क्षेत्र की पहचान बन गया।
शैलेन्द्र सिंह की सक्रिय भूमिका
आदित्यपुर की काली पूजा को विशेष पहचान दिलाने में शैलेन्द्र सिंह का योगदान अहम रहा है।
- हर वर्ष वे आयोजन समिति के साथ मिलकर पूजा को सफल बनाने में जुटे रहते हैं।
- स्मारिका प्रकाशन में उनकी विशेष दिलचस्पी रहती है।
- दिल्ली प्रवास के दौरान राष्ट्रीय नेताओं को स्मारिका भेंट करना उनकी सोच को दर्शाता है कि यह परंपरा केवल क्षेत्रीय दायरे तक सीमित न रहे।
स्मारिका की विशेष पहचान
काली पूजा का स्मारिका केवल धार्मिक ग्रंथ जैसा दस्तावेज नहीं, बल्कि यह साहित्य, समाज और संस्कृति का संगम है।
- इसमें धार्मिक लेख, साहित्यिक रचनाएं, कविताएं और सामाजिक विमर्श शामिल होते हैं।
- स्थानीय प्रतिभाओं को इसमें अपनी अभिव्यक्ति का मंच मिलता है।
- वर्षों से यह स्मारिका आदित्यपुर की पूजा को अलग पहचान दिलाती आ रही है।
शैलेन्द्र सिंह ने स्मारिका को राष्ट्रीय नेताओं तक पहुंचाकर यह सुनिश्चित किया कि झारखंड की सांस्कृतिक विरासत को अब देश के बड़े मंच पर भी मान्यता मिले।
मां काली का पौराणिक स्वरूप
काली पूजा का महत्व केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है। देवी काली का स्वरूप स्वयं शक्ति और साहस का प्रतीक है।
- पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब राक्षसों का आतंक बढ़ा तो मां दुर्गा के क्रोध से काली का उद्भव हुआ।
- उन्होंने असुरों का संहार कर धर्म की रक्षा की।
- मां काली का गहरा संदेश यह है कि जीवन में बुराई, पाप और अन्याय का अंत कर ही सच्चे सुख और शांति की प्राप्ति संभव है।
आदित्यपुर की काली पूजा इसी पौराणिक आस्था को जीवंत करती है।
भक्ति और भव्यता का संगम
पूजा के दौरान आदित्यपुर एमआईजी का वातावरण पूरी तरह भक्तिमय हो उठता है।
- भव्य पंडाल, जगमगाते दीप और देवी का अलौकिक रूप श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
- आरती, मंत्रोच्चार और भजन-कीर्तन से वातावरण गूंजता रहता है।
- हजारों श्रद्धालु प्रसाद पाकर अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं।
शैलेन्द्र सिंह स्वयं भी इस माहौल में श्रद्धालुओं के साथ शामिल होते हैं और भक्ति भाव के प्रसार में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।
सामाजिक एकजुटता का प्रतीक
काली पूजा केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह समाज को जोड़ने का अवसर भी है।
- इसमें सभी जाति, वर्ग और समुदाय के लोग शामिल होते हैं।
- सामूहिक भंडारा और प्रसाद वितरण आपसी भाईचारे को मजबूत करता है।
- पूजा के माध्यम से सामाजिक समरसता का संदेश पूरे क्षेत्र में फैलता है।
शैलेन्द्र सिंह इस आयोजन को सामाजिक एकजुटता का माध्यम मानते हैं। उनका कहना है कि पूजा केवल मंदिर या पंडाल तक सीमित नहीं, बल्कि यह पूरे समाज की साझा आस्था का प्रतीक है।
धार्मिक परंपरा और आधुनिक सोच का संगम
आज जब आधुनिकता और तकनीक के प्रभाव से परंपराएं कहीं न कहीं कमजोर हो रही हैं, ऐसे में आदित्यपुर की काली पूजा और इसकी स्मारिका एक मिसाल है।
- स्मारिका आधुनिक पीढ़ी को परंपरा से जोड़ती है।
- सोशल मीडिया और तकनीक के दौर में भी यह परंपरा निरंतर जीवित है।
- शैलेन्द्र सिंह की पहल ने इसे और सशक्त कर दिया है।
झारखंड से राष्ट्रीय पहचान तक
शैलेन्द्र सिंह की हालिया पहल इस बात का प्रमाण है कि आदित्यपुर की काली पूजा अब केवल क्षेत्रीय पर्व नहीं रही, बल्कि इसे राष्ट्रीय मंच पर भी पहचान मिलने लगी है।
- राष्ट्रीय नेताओं को स्मारिका भेंट करना केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि झारखंड की संस्कृति को सामने रखने का प्रयास है।
- इससे आने वाले समय में यह आयोजन देशभर के लोगों को आकर्षित करेगा।
मां काली का आध्यात्मिक संदेश
काली पूजा हमें यह सिखाती है कि जीवन में साहस, धैर्य और न्याय के मार्ग पर चलना ही सच्ची भक्ति है।
- मां काली का स्वरूप बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
- यह पूजा हमें भीतर की नकारात्मकता को खत्म कर सकारात्मक सोच विकसित करने की प्रेरणा देती है।
निष्कर्ष
आदित्यपुर एमआईजी की काली पूजा न केवल झारखंड की धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना का प्रतीक भी है। इस परंपरा को राष्ट्रीय मंच तक ले जाने का श्रेय शैलेन्द्र सिंह को जाता है। उन्होंने जिस तरह स्मारिका को राष्ट्रीय नेताओं तक पहुंचाकर इसे सम्मान दिलाया, उसने यह साबित किया कि धर्म और संस्कृति ही किसी समाज की असली पहचान होते हैं।
आज आदित्यपुर की काली पूजा झारखंड की जनता के लिए गर्व का विषय है, और आने वाले समय में यह पूरे देश में झारखंड की सांस्कृतिक पहचान को नई ऊंचाई देगी।